December 23, 2024 9:35 pm

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गुरू गृह में अंहकार को त्यागकर आयें :- महामंडलेश्वर हरिचेतना नंद।

सम्पादक :- दीपक मदान

वेदान्त सम्मेलन के दूसरे दिन का आरम्भ गुरु वन्दना एवं मधु माता जी के भजन के साथ हुआ ।मधु माता जी ने बताया कि टाटेश्वर बाबा गंगा को द्रवित ब्रह्म का स्वरूप मानते थे । दूसरे दिन वेदान्त चर्चा में डा सुनील बत्रा प्राचार्य एस एम जे एन पी जी कालेज ने कहा कि गुरू वो व्यक्तित्व है जो मनुष्य को महामानव बनाने का कार्य करता है ।गुरू की महिमा का बखान इस जिव्हा के माध्यम से सम्भव नही है । डाॅ बत्रा ने बताया कि टाट वाले बाबा ने कभी भी धन मुद्रा को स्पर्श नहीं किया । वेदान्त चर्चा की श्रृंख्ला में गरीबदासीय परम्परा के स्वामी हरिहरानंद ने दूसरे दिन कहा कि विचारों का शुद्धिकरण सबसे आवश्यक है,विचारों को सत्यम् शिवम् सुंदरम् पर आधारित करें।
दिल्ली निवासी शील माता ने बाबा के चरणों में मधुर भजन की प्रस्तुति दी।स्वामी अखण्डानंद ने वेदान्त सम्मेलन में विचार रखते हुए कहा कि स्वयं को देखने के लिये इंद्रियो की नहीं आध्यत्मिक नज़र की आवश्कता है ।संसार की प्रत्येक वस्तु को ईश्वर मान लेना ही वेदान्त है ।
महाराज हठयोगी ने कहा कि संसार रंगमंच है और हम सभी पात्र है ,हम सभी परमपिता की सत्ता से आये है और इसी में लीन हो जाएगें ।शरीर और प्राण एक दूसरे के परस्पर पूरक है ।।हमारे साथ केवल सत्कर्म की पूंजी ही साथ जाएगी ।कर्म करना अति आवश्यक है लेकिन कर्म में आसक्ति नहीं होनी चाहिए । महामण्डलेश्वर स्वामी हरि चेतनानंद ने कहा कि वेदान्त की परिभाषा ‘ कोउम् ‘ अर्थात् ” मैं कौन हॅू ” से आरम्भ होती है ।शरीर की आवश्यकता रोटी कपड़ा और मकान है जो संसार में पर्याप्त है ।सृष्टि के मूल में कामना है ।इन्द्रियाँ मन को भटकाती है । इसालिए गुरू गृह में अंहकार को त्यागकर आयें। गुरू जी ने कहा कि प्रत्येक प्राणी को गीता का अध्ययन करना चाहिए
ऋषिकेश से आये स्वामी सर्वात्मानंद महाराज ने अपने वेदान्त सम्बोधन में कहा कि अगर वेदो के ज्ञान के बाद भी अगर भाव नहीं है तो ज्ञान व्यर्थ है।ऐसी कोई भी जगह नहीं है जहाँ टाटेश्वर भगवान नहीं है ।पाप और पुण्य से परे जाकर ही भव सागर से मुक्ति मिलती है ।मन में श्रद्धा और भाव से ही मुक्ति मिलती है ।अनेको जन्मों के पुण्य से ही सत्संग की प्राप्ति होती है ।ईश्वर सर्वत्र एवं सर्वव्यापक है जैसे चीनी के हर हिस्से में मिठास होती है
वेदांत सम्मेलन में स्वामी विजयानंद महाराज ने कहा कि सबसे अहम बात ये है कि क्या हम परमात्मा को देखना चाहते है ? हम स्वयं को देह मानकर परमात्मा को देखने का अवसर गवाँ देते है ।हमे स्वयं को ईश्वर का स्वरूप मान कर देखना चाहिए ।हम बहुत सौभाग्यशाली है कि हमें मनुष्य के रूप में जन्म मिला ताकि हम अपना उद्धार कर सकें । माता कृष्णामयी ने कहा कि मृत्यु जीवन का समापन नहीं बल्कि मुक्ति है ।वेदो में ऊँ को ही ईश्वर माना है । परमात्मा को प्राप्त करने के लिए गुरु आवश्यक है । अंत में कमला कालरा, माता महेशी, राम कृष्ण, नरेश मदान, भावना बहन, आदि द्वारा भजन कीर्तन किया गया
अन्त में गुरु चरणानुरागी समिति की ओर से अध्यक्षा रचना मिश्रा द्वारा आभार व्यक्त किया गया।

 

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