सम्पादक :- दीपक मदान
राज्य में भाजपा की सरकार के कार्यकाल में भ्रष्टाचार और घोटालों की एक लम्बी सूची है. इसकी बुनियाद भाजपा ने राज्य निर्माण के साथ ही अपनी पहली अंतरिम सरकार के कार्यकाल में डाल दी थी. कांग्रेस और भाजापा ने भ्रष्टाचार की इस बेल को पिछले २२ सालों में मिल कर खाद पानी देकर खूब पनपाया और राज्य के बेरोजगार नौजवानों के अधिकारों पर डाका डालने का पाप किया है। ज़िला अध्यक्ष संजय सैनी ने कहा कि राज्य के वह प्रतिभावान नौजवान जो योग्य थे, जो पात्र थे, वास्तव में इन नौकरियों के हक़दार थे के हक़ को मारकर भाजपा व कांग्रेस की सरकारों में बैठे लोगों ने वह नौकरी किसी अपात्र को बेच दी, आज वह नौजवान नौकरी की उम्र की सीमा लाँघ गया है, क्या भाजपा की यह सरकार और कांग्रेस पार्टी दोनों मिलकर उत्तराखंड के उन नौजवानों को उनका हक़, उनको मिलने वाली नौकरी वापस लौटा सकती है? यह राज्य के हर उस माता पिता के मन में राज्य के हर उस नौजवान के मन में सबसे बड़े सवाल के रूप में है और यह सब लोग इस सवाल का जबाब बारी बारी से सत्ता का आनंद लेने वाली दोनों पार्टियों से पूछना चाहती हैं। आज का दूसरा बड़ा सवाल है कि जिन लोगों ने पिछले 22 सालों में रिश्वत देकर नौकरी हासिल की ऐसे लोग किसी भी दशा में अपने पेशे के साथ न्याय नहीं कर सकते हैं, गलत हथकंडे अपना कर नौकरी हासिल करने वाले लोग नौकरी के दौरान जनता की जेब पर डाका डाल रहे होंगे. जनता का खून चूसने वाली इन जोंकों से जनता को कौन बचाएगा विधानसभा अध्यक्ष अनिल सती ने कहा कि इस सवाल का जबाब भी राज्य की जनता इन दोनों पार्टियों से मांग रही है. लेकिन भाजापा और कांग्रेस भ्रष्टाचार के इस खेल को मिलकर के खेलते हुए जनता के सवालों को मिलकर के टाल रही हैं। प्रदेश प्रवक्ता हेमा भंडारी ने कहा कि राज्य निर्माण आन्दोलन के शहीदों ने या राज्य निर्माण सेनानियों ने ऐसे भ्रष्टाचार युक्त राज्य के लिए लड़ाई नही लड़ी थी. राज्य के राजनेताओ से लेकर कुछ नौकर शाह नौकरी की भर्तियों में लगातार घोटाले करके बेरोजगारों का मुंह चिढ़ा रहे हैं तथा राज्य की जनता का मखौल उड़ा राहे हैं. राज्य में विकास और बेरोजगारों को रोजगार का सपना बर्षों बाद भी सपना ही बनकर रह गया है. सरकारी नौकरियों की भर्तियों में व्याप्त भ्रष्टाचार की फेहरिस्त बहुत लम्बी है. राज्य का मीडिया धन्यवाद का पात्र है कि उन्होंने पूरी जिम्मेदारी के साथ इस भ्रष्टाचार को उजागर करने में अपने कर्तव्य का पालन किया। अधीनस्थ सेवा चयन आयोग से पहले पन्त नगर कृषि विश्वविध्यालय द्वारा २००६ से २०२१ के बीच लगभग २० भर्ती परीक्षाएं आयोजित करायी गयी हैं. इन में से १६ परीक्षाओं की टेस्ट एवं सलेक्सन कमिटी के समन्वयक रहे पन्त नगर कृषि विश्वविध्यालय से सेवानिवृत अधिकरी दिनेश चन्द्र जोशी की अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की परीक्षाओं के पेपर लीक के मामले में संलिप्तता के बाद गिरफ़्तारी एक और परीक्षा घोटाले की तरफ मजबूत इशारा करती है। कुल मिलाकर विगत 22 वर्षों में भाजपा और कांग्रेस ने मिलकर उत्तराखंड की भोली भाली जनता को बेवकूफ बनाकर राज्य के प्रतिभावान युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ करते हुए अपनों को नौकरियां देकर शहीदों के सपनों को धूल धूसरित करने का काम किया. यह बड़े ताज्जुब की बात है की जिनसे सरकार को अपने काम काज के लिए दिशा निर्देश दिए जाने थे वह लोग पकडे जाने पर नियम क़ानून का हवाला देकर बिना शर्मसार होकर स्वीकार कर रहे हैं कि उन्होंने यह सब किया है. विधानसभा अध्यक्ष जी द्वारा मुख्यमंत्री जी के एक पते के बाद जो जाँच कमेटी गठित की गई है वह पहले २०१२ से २०२२ की जाँच करेगी फिर २००० से २०१२ तक की जांच करेगी का अर्थ समझ में नहीं आया, यह भी समझ से परे है कि नियमावली २०११ में बन गई. सही बात तो यह है कि २०११ से पहले उत्तराखंड का विधानसभा सचिवालय उत्तरप्रदेश की नियमावली से संचालित होता था. विधानसभा की वर्तमान अध्यक्ष जी से लेकर पूर्व अध्यक्षों द्वारा विशेषाधिकार का हवाला देना भी कानून सम्मत नहीं है. किसी भी पद धारित व्यक्ति को विशेषाधिकार भी संविधान के दायरे में ही मिले होते हैं संविधान से ऊपर कोई भी नहीं है. इसलिए जानकार व्यक्तियों द्वारा अपने पद का दुरूपयोग करते हुए किया गया भ्रष्टाचार ज्यादा बड़ा और अक्षम्य अपराध है।
उत्तराखंड को भ्रष्टाचार में झोंकने वाले किसी भी शक्स को माफ़ नहीं किया जाना चाहिए. इसलिए हमारी मांग है कि राज्य सरकार सभी मामलों की जांच हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता वाली कमेटी से करवाए.बैठक में शिशुपाल नेगी,डॉक्टर यूसुफ़,संजू नारंग,ख़ालिद मास्टर चाँद संव्वर।