सम्पादक :- दीपक मदान
अंतिम संस्कार औरत नहीं कर सकती है। यह तथ्य मौजूदा सदी में अव्यावहारिक परंपरा मानी जा सकती है। भारतीय संस्कृति में किसी की मौत होने पर उसको मुखाग्नि मृतक का बेटा/भाई/ भतीजा/पति या पिता ही देता है। दूसरे लफ्जों में आमतौर पर पुरुष वर्ग ही इसे निभाता है।
पुरुषप्रधान व्यवस्था का बेहतर उदाहरण भी इसे मान लीजिए और कहीं न कहीं नारी को कमजोर अहसास कराने वाली परंपरा भी। बीते एक दशक में इस व्यवस्था को चुनौती देने/व्यावहारिक बनाने वाली दर्जनों नजीरें इसी भारतीय परंपरागत व्यवस्था में सामने दिखीं l सामाजिक, जातीय परंपरा के पक्षधरों के शुरुआती विरोध के बावजूद नारी ने अपने ‘प्रियजन’ की चिता को अग्नि दी और बाद में सराहना का पात्र भी बनी। एक माँ-बेटी, बहन-पत्नी तारणहार बने या न बनाई जाए इसके पीछे तर्क-वितर्क हो सकते हैं। लेकिन उत्तराखंड के हरिद्वार की शर्मा परिवार की बबली शर्मा का उदाहरण लें ।
करीब 4 दिन पहले हुई इस घटना में तीनों बेटियो ने बाकायदा हंडी उठाई, अपनी माता को मुखाग्नि दी और कपालक्रिया की। उत्तराखंड में हरिद्वार की समाज सेविका बबली शर्मा का निधन हुआ। बीमार माता की सेवा में जुटी तीनों बहनों के सामने यही यक्ष-प्रश्न था कि मुखाग्नि कौन देगा? भतीजे, भानजों का इंतजार करते निढाल हो रही तीनों बेटियां ने यह धर्म निभाया।
अब ऐसी खबरें सनसनी बनने की बजाए स्वीकारोक्ति बनना चाहिए। देशभर में ऐसी घटनाएँ चुनौती दे रही हैं। यहाँ सवाल उठता है कि इसे सनसनी, परंपरा का विरोध या फिर सामाजिक नियमों-कायदों का उल्लंघन क्यों मानें? जहाँ संतानहीन या पुत्रियाँ ही हों, वहाँ पुरुष नातेदारी की तलाश क्यों की जाए? यह ज्यादा बेहतर होगा कि नारी जगत का नातेदार इस परंपरा का वाहक बने। इसे माना ही जाएगा। बदलते परिदृश्य में इस प्रथा पर किसी तरह का बंधन नहीं होना चाहिए। हिन्दू परंपरा में बेटे द्वारा दी गई मुखाग्नि महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसे मृतक की आत्मा की मुक्ति से जोड़ा गया। वहीं बेटे के एक पुण्य कर्म से। अब सवाल बनता है कि क्या इस पुण्य की हकदार बेटी नहीं बन सकती? रिश्ते में आत्मीयता का पैमाना नहीं होता है। कानूनी अधिकारों में संपत्ति की उत्तराधिकारी बेटी बनी। अब यह भी धीरे-धीरे हो रहा है कि अंतिम संस्कार के पुण्य कर्म की भागीदार नारी बने। वह माँ-बाप, भाई-पति या परिवार को सहारा दे रही है। करोड़ों उदाहरण देशभर में और दर्जनों अपने घर के आसपास मिलेंगे। हर क्षेत्र में तरक्की के नए आयाम नारी जगत ने रचे और रच रही हैं। फिर इसी वर्ग को इस कार्य से वंचित नहीं रखा जा सकता है।