सम्पादक :- दीपक मदान
रुड़की।शबे बारात में कोई खास इबादत करना शरीयत में नहीं है,जो इबादत आम दिनों में होती है,वही इबादत इस खास रात में भी करें।अलबत्ता ज्यादा से ज्यादा इबादत करना सुन्नत है।नबी ए करीम सल्ल. शाबान के महीने में अधिक इबादत किया करते थे।शबे बरात के कोई खास नफील नहीं होते,इन रातों में नबी ए करीम सलातुल तौबा,सलातुल हाजत, तहज्जुद,इस्तगफार,दरूद शरीफ,दुआ,कुरान पाक की तिलावत वगैरा इबादत करते थे।नफिल नमाज में कुरान शरीफ ज्यादा पढ़ना अफजल है।मौलाना अरशद कासमी,मौलाना अजहरूल हक,मौलाना नसीम कासमी,कारी मोहम्मद हारून ने बताया कि जो भी इबादत करें मिस्वाक करके करें,इससे सवाब बढ़ जाता है।मिस्वाक करना सुन्नत है। पन्द्रह शाबान के रोजे की कोई खास फजीलत किसी हदीस में नहीं मिलती,अलबत्ता नबी ए करीम इस महीने में कसरत से रोजा रखते थे।अय्याम बैज (हर महीने के तीन रोजे) भी नबी ए करीम रखा करते थे,इसलिए सुन्नत समझकर शाबान के महीने में रोजा रखना मुस्ताहब है।इस महीने में रोजा रखने से और महीनों की निस्बत ज्यादा सवाब मिलता है,लेकिन इन रोजों को फर्ज या वाजिब ना समझा जाए।हाजी नौशाद अहमद,मुस्लिम विद्वान डॉक्टर नैयर काजमी,अफजल मंगलौरी,हाजी सलीम खान, जावेद आलम एडवोकेट, हाजी महबूब कुरैशी,शेख अहमद जमा,हाजी लुकमान कुरैशी बताते हैं कि शबे बरात की रात इबादत की है,जो नफ्ली इबादत है। फर्ज या वाजिब नहीं है।इजतमाई कोई काम इस रात में ना करें जैसे नफिल नमाज़ जमात से पढ़ना,नफिल इबादत के लिए मस्जिद में जमा होना, चंदा करके खाने की कोई चीज बांटना,इस रात को ईद की रात की तरह ना बनाएं और ना ही कब्रस्तान या बाजारों में इकट्ठा हों।