December 24, 2024 1:56 am

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माहे रमजान में गरीब की मदद से बढ़कर नहीं कोई पुण्य का काम।

सम्पादक :- दीपक मदान

मुकद्दस रमजान को इबादत का महीना कहा जाता है,इस दौरान इबादत करने वाले शख्स की हर तमन्ना अल्लाह पूरी करता है।इस्लाम धर्म के मुताबिक मुसलमान का मतलब ‘मुसल ए ईमान’ होता है अर्थात जिसका ईमान पक्का हो वही सच्चा मुसलमान है।रोजा सब्र का नाम है,जो हमें एक दूसरे के साथ मोहब्बत और इंसानियत का पैगाम देता है।गरीबों की ज्यादा से ज्यादा मदद कर सवाब कमाने का महीना भी है माहे रमजान।समाजसेवी हाजी नौशाद अली,जावेद अख्तर एडवोकेट,अलीम सिद्दीकी,शहजाद अंसारी, कुंवर जावेद इकबाल और हाजी लुकमान कुरैशी बताते हैं कि इस महीने में गरीबों की ज्यादा से ज्यादा मदद कर दुआएं हासिल करनी चाहिए और रमजान शरीफ में कुरान शरीफ का पढ़ना,नमाज की पाबंदी, एतिकाफ,जकात,फितरा देना बड़ा पुण्य का कार्य है।इन सब बातों के अलावा असहाय,कमजोर,गरीब और मजदूरों की मदद करना भी रमजान की इबादत में से एक इबादत है।माहे रमजान हमें भूखे-प्यासे की मदद करने की प्रेरणा देता है,इसमें जरूरतमंदों की मदद करना इस्लाम मजहब का खास संदेश है।रोजा सिर्फ दिन भर भूखा रहने का नाम नहीं,बल्कि रोजा इंसान को इंसान से प्यार करना सिखाता है।रोजा गरीब भाइयों से मोहब्बत करने का जज्बा पैदा करता है। रमजान में मुसलमानों को अपने पूरे साल की जकात निकालने के साथ ही ज्यादा से ज्यादा गरीब जरूरतमंदों,असहाय, विधवाओं तथा यतीमों की मदद करनी चाहिए।कोई भी गरीब ईद उल फितर मनाने से वंचित ना रहे।पैसा तो जीवन भर कमाना है,जो पैसा हम कमाते हैं उसमें जरूरतमंदों और असहाय लोगों का भी हक होता है। रमजान के आखिरी दस दिनों को बेहद खास माना गया है।इन खास दिनों में एतिकाफ में बैठकर मुसलमान अल्लाह की खास इबादत करते हैं।माना जाता है कि एतिकाफ में बैठने वालों पर अल्लाह की खास रहमत होती है,ऐसे में अल्लाह उनके सारे गुनाहों को माफ कर देते हैं और उनके लिए जन्नत के दरवाजे खोल देते हैं।रमजान के बीच में रोजे के मगरिब से शुरू होकर चांद रात तक अल्लाह की इबादत की जाती है।हदीस शरीफ में है कि जिस बस्ती की मस्जिद में कोई भी शख्स एतिकाफ में बैठकर इबादत करें तो उस बस्ती के लोगों के गुनाहों को माफ कर दिया जाता है।इस आखिरी और तीसरे अशरा में पुरुष मस्जिदों और महिलाएं घरों में एतिकाफ में बैठती हैं।एतिकाफ के दौरान अल्लाह के खास इबादत की जाती है,इस बीच किसी की बुराई करने,उसे बुरा भला कहने, चुगली करने आदि से बचने तथा नेक अमल करने का हुक्म दिया गया है।

 

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