सम्पादक :- दीपक मदान
पौराणिक कथाओं के अनुसार सावित्री ने तपस्या और व्रत-उपवास के बल पर यमराज से अपने पति के प्राण वापस मांगे थे। उसी प्रकार हर सुहागिन अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं और इसलिए वट सावित्री का भी व्रत रखा जाता है. पंचांग के अनुसार आज यानि 19 मई को ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि है और आज के दिन वट सावित्री व्रत रखा जाएगा। इस दिन सुहागिन महिलाएं 16 श्रृंगार कर बरगद के पेड़ का विधि-विधान से पूजन करती है और अपने पति की लंबी आयु की कामना करती हैं. आइए जानते हैं वट सावित्री व्रत के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त और पूजन विधि।
वट सावित्री व्रत 2023 शुभ मुहूर्त
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कोई भी व्रत या पूजा यदि शुभ मुहूर्त में की जाए तो वह अधिक फलदायी मानी जाती है. इसलिए पूजा के लिए शुभ मुहूर्त अवश्य पता होना चाहिए. वट सावित्री व्रत के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 7 बजकर 19 मिनटसे लेकर सुबह 10 बजकर 42 मिनट तक रहेगा।
वट सावित्री व्रत का महत्व
ये व्रत इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन सावित्री ने सत्यवान के प्राण यमराज से वापस लिए थे. तभी से ये व्रत पति की लंबी आयु के लिए रखा जाने लगा। इस व्रत में वट वृक्ष का महत्व बहुत होता है. इस दिन सुहागिन स्त्रियां वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ का पूजन करती है और उसकी परिक्रमा लगाती हैं. बरगद के पेड़ की 7,11,21,51 या 101 परिक्रमा लगाई जाती है. पेड़ पर सात बार कच्चा सूत लपेटा जाता है।
वट सावित्री व्रत पूजन विधि
इस दिन सुबह उठकर स्नान करें. साफ वस्त्र पहनें. हो सके तो नए वस्त्र धारण करें. वट वृक्ष के आसपास गंगाजल का छिड़काव करें. बांस की टोकरी लें और उसमें सत अनाजा भर दें. इसके ऊपर ब्रह्माजी, सावित्री और सत्यवान की मूर्ति रखें. ध्यान रहे कि सावित्री की मूर्ति ब्रह्माजी के बाईं ओर हो और सत्यवान की दाईं ओर। वट वृक्ष को जल चढ़ाएं और फल, फूल, मौली, चने की दाल, सूत, अक्षत, धूप-दीप, रोली आदि से वट वृक्ष की पूजा करें. बांस के पंखे से सावित्री-सत्यवान को हवा करें और बरगद के एक पत्ते को अपने बालों में लगाएं.वट वृक्ष के नीचे सावित्री और सत्यवान की कथा सुनें. अखंड सुहाग की कामना करें और सूत के धागे से वट वृक्ष की तीन बार परिक्रमा करें. आप 5,11, 21, 51 या 108 बार बरगद के पेड़ की परिक्रमा कर सकती हैं. जितनी ज्यादा परिक्रमा करेंगी उतना अच्छा होगा। परिक्रमा करने के बाद बांस के पत्तल में चने की दाल और फल, फूल नैवैद्य आदि डाल कर दान करें और ब्राह्मण को दक्षिणा दें. पूजा संपन्न होने के बाद जिस बांस के पंखे से सावित्री ने सत्यवान को हवा की उसे घर ले जाकर पति को भी हवा करें। फिर प्रसाद में चढ़े फल आदि ग्रहण करने के बाद शाम के वक्त मीठा भोजन करें।
डिस्क्लेमर: यहां दी गई सभी जानकारियां सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं. India.Com इसकी पुष्टि नहीं करता. इसके लिए किसी एक्सपर्ट की सलाह अवश्य लें।