सम्पादक :- दीपक मदान
आज नई संसद भवन के उद्घाटन के अवसर पर बहादराबाद स्तिथ उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय में एक राष्ट्र यज्ञ का आयोजन किया गया। उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर दिनेशचंद्र शास्त्री ने कहा कि यह पूरे देश के लिए गौरव का विषय है की नई संसद भवन का उद्घाटन जिस वैदिक संस्कृत परंपराओं के सानिध्य हुआ है वो भारत के लिए ऐतिहासिक क्षण है और चूंकि उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय वैदिक संस्कृत परंपराओं का ही संरक्षण एवं संवर्धन करता है। तथा कही उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी दिल्ली में इस पल के गवाह बन रहे है। ऐसे में हमारे मुख्यमंत्री के प्रति एक जिम्मेदारी होती है की उसके राज्य में देश के इस उत्साहित पल के साझेदार बने। कुलपति दिनेशचंद्र शास्त्री कहा की जो दण्ड नई संसद में स्थापित किया गया है उसको लेकर विवाद करने से पहले उसको समझने की आवश्यकता है जिसको सिंगोल कहते है वो मात्र एक छड़ी नहीं है जो सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक बताई जा रही है। ऐसे दंड को अनादि काल से राजाओं के साथ रखा जाता था की जिससे उसे अपने कर्तव्य बोध का ज्ञात रहे और वो पद भ्रष्ट न हो जाए। उस छड़ी को मृत्यु का प्रतीक कहा गया है। उन्होंने बताया की जब भगवान श्रीराम का राज्य अभिषेक किया गया तब विश्वामित्र जी ने भगवान श्री राम के कमर पर तीन बार दंड मारते हुए कहा धरम दंडोस्ती दंडोस्ती धरम दंडोस्ती दंडोस्ती धरम दंडोस्ती दंडोस्ती अर्थात तुम कहीं भी जाओगे तो तुम यह मत समझना कि अब आपकी सत्ता पूर्ण तरह स्थापित हो गए हैं और आप ही सर्वोच्च है इसलिए यह दंड तुम्हारे साथ हमेशा पीछे खड़ा रहेगा। यह तुम्हें याद दिलाता रहेगा की तुम्हारा धर्म क्या है? कर्तव्य क्या है ? सत्ता का सदुपयोग कैसा करना है? इसलिए यह परंपरा त्रेता युग से चली आ रही है। चाणक्य ने भी उसे मृत्यु कहकर संबोधित किया है। तीर्थ पुरोहित उज्जवल पंडित ने कहा कि यह पूरे देश के लिए गौरव का विषय है की भारत की नई संसद का उद्घाटन हो रहा है और उसका प्रथम कार्य वैदिक रीति रिवाज से किया गया। यह सनातन परंपरा की वह मजबूती का आधार स्तंभ है जिसके रहते यह भारत लगातार उन्नति कर रहा है। उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय वैदिक संस्कृत भाषा को मजबूत करने तथा यहां से निकलने वाले छात्र भारत के राष्ट्र गौरव की तरह है जिन्होंने पश्चिम संस्कृती के बढ़ते प्रभाव के बाद भी इस परंपरा को बनाए रख रखा है।आज के कार्यकर्म की प्रसन्नता संस्कृत भाषा के छात्रों के लिए महत्पूर्ण है। संस्कृत भाषा भारत का मूल है। इसके सानिध्य में हुआ प्रत्येक कार्य सफलता को स्थापित करता है। इस अवसर पर डॉ०अरविंद नारायण मिश्र, डॉ अरुण मिश्र, डॉ शैलेश तिवारी, डॉ दामोदर परगाई, डॉ प्रतिभा शुक्ला, डॉ विद्यामति दुवेदी, डॉ रामरतन खंडेलवाल, डॉ उमेश शुक्ल डॉ विनय, मनोज गहतोड़ी , डॉ मीनाक्षी सिंह रावत, डॉ श्वेता अवस्थी, अमन दुबे,नम्रता सिंह,भावना शाक्य,सोनाली राजपूत,संजय,विद्यासागर, कार्तिक श्रीवारस्त्व, हरीश चंद्र तिवारी आदि मौजूद रहे।