-सुदेश आर्या
बीपी की नॉर्मल रेंज 120/80 होती है।130/89 को हम प्री हाइपर टेंशन कहते हैं। 159/99 को स्टेज 1st कहते हैं। 160 के ऊपर को स्टेज सैकेंड कहते हैं। 180 के ऊपर इमरजेंसी है।
बीपी हमेशा एक सा नहीं रहता है। ब्लडप्रेशर की संख्याएँ दरअसल हार्ट की हर धड़कन के साथ बदलती हैं। ये सुबह उठने के टाइम कम, दिन और शाम को ज्यादा और रात को सोते समय कम हो जाता है। इसलिए जो ये रीडिंग है ये एवरेज है। न विश्वास हो तो किसी कार्डियक मॉनिटर पर अपना ब्लडप्रेशर नापते वक़्त देख लेना। वह हर नब्ज़ के साथ बदलता नज़र आएगा। लेकिन यह बदलाव बहुत ज्यादा नहीं होता। अमूमन 112/80 से ब्लड प्रेशर अगली ही धड़कन में 182/112 नहीं हो जाता। वह एक रेंज में रहा करता है। उसी के भीतर रहने के कारण डॉक्टर उसे बढ़ा, सामान्य या घटा समझते हैं।
लेकिन क्या किसी का बढ़ा बीपी किन्हीं परिस्थितियों में सामान्य हो सकता है? बिलकुल हो सकता है। घट सकता है? बिलकुल घट सकता है। कभी भी, कोई भी गतिविधि शरीर के ब्लडप्रेशर पर प्रभाव डालकर उसे बदल सकती है। ऐसे में उसके नियमित मापन का महत्त्व बढ़ जाता है।
हाइपरटेंशन के ज़्यादातर लोगों में कोई खास लक्षण नहीं होते हैं। कुछ लोगो में ज्यादा ब्लडप्रेशर बढ़ जाने पर सरदर्द होना, ज़्यादा तनाव, सीने में दर्द या भारीपन, सांस लेने में परेशानी, अचानक घबराहट, समझने या बोलने में कठिनाई, चेहरे, बांह या पैरो में अचानक सुन्नपन, झुनझुनी या कमजोरी महसूस होना या धुंदला दिखाई देना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।
आनुवंशिकता हाइपरटेंशन का मुख्य कारण है। इसके कुछ लक्षण आपको अपने माँ बाप, दादा दादी, नाना नानी से मिले हैं। कई उनसे भी पहले की पीढ़ियों से। आपके जींस, आपका कल्चर, आपका क्लाइमेट, आपका समाज। सब आपके खिलाफ़ हैं और आपके बढ़े हुए ब्लडप्रेशर के पक्ष में हैं।
ऐसा नहीं है कि मैग्गी, समोसा, नमकीन, अचार, स्पाइसी डिनर और पानी पूरी दो दिन में खाने से ब्लड-प्रेशर बढ़ गया है। ऐसा भी नहीं है कि मोटापा एक हफ़्ते में ब्लड-प्रेशर बढ़ा चुका है। मामले की गम्भीरता इससे कहीं अधिक है, जिसे जानने-समझने की ज़रूरत है। शोध एवं अनुसंधानों की मानें तो मोटापा उच्च रक्तचाप का बहुत बढ़ा कारण है। ज़िन्दगी जीने का आसान ढंग, बढ़ता तनाव, घटती कसरत, बढ़ते नशे। एक मोटे व्यक्ति मे उच्च रक्तचाप का खतरा एक समान्य व्यक्ति की तुलना मे बहुत बढ़ जाता है।
दूसरा कारण है व्यायाम की कमी, खेल-कूद, व्यायाम, एवं शारीरिक क्रियाओं में भाग न लेने से भी उच्च रक्तचाप का खतरा बढ़ जाता है। कसरत करो, अगर संभव हो और आपके पैर सही सलामत हैं तो कम से कम दस किलोमीटर भागो। तनाव घटाओ, पैसे कमाने के चक्कर में अगर स्ट्रेस हो रहा है तो वो तरीक़ा बदल लो, वह ग़लत स्रोतों से आ रहा है।
साठ बरस की उम्र में 500-500 के बंडलों से सौरमण्डल का साम्राज्य नहीं खरीदा जा सकता, इसलिए आसान व्यायामों से शुरू करो, धीरे-धीरे स्तर बढ़ा दो। सब अपने आप बेहतर हो जाएगा। कमर का घटता घेरा ब्लड-प्रेशर को नीचे लाएगा। दारू छोड़ दो, स्मोक छोड़ दो। इनका इस्तेमाल बिना हेलमेट के सड़क पर चलने जैसा है। आप जोखिम ले रहे हैं, समाज आपको इस थ्रिल-स्वैग जैसी बेवकूफियाँ दिखा रहा है।
लाइफस्टाइल सुधार लो, क्योंकि जिस दिन ओपीडी में आपको पर्चे पर एमलोडीपीन लिख कर दी गयी थी न, बस वहीं पर उसी दिन उसी ओपीडी में आपको इसकी लत लग चुकी होगी। याद रखना किसी रात एक हल्की सी लहर उठेगी और आप नहीं रहोगे, काली घनी अँधेरी रात में लाल नीली रोशनी से जगमग एक एम्बुलेंस आपके घर के आगे खड़ी होगी।
अमेरिकी राष्ट्रपति फ़्रैक्लिन डी रूज़वेल्ट तो याद होगा ही? अतः अस्थियां बिखरने से पहले जीवन में “आस्था” पैदा कर लेना, योग और प्राणायाम अपना लेना सब अच्छा ही अच्छा होगा।
पार्कों में जो लोग रोज घूमने आते हैं ये भी एक तरह का इलाज़ ही है। जहाँ रक्त होगा, वहाँ रक्तचाप भी होगा। जहाँ रक्त-चाप है, वहाँ उसके बढ़ने का ख़तरा होगा। हर चार में से एक रोगी यह जानता ही नहीं कि उसका ब्लड-प्रेशर बढ़ा हुआ है क्योंकि उसने कभी नपवाया ही नहीं इसलिए अपना ब्ल्डप्रेशर वक़्त वक़्त पर नपवाते रहना।