-सुदेश आर्या
(प्रयागराज कुंभ श्रृंखला के अंतर्गत आज पेश है महिला नागा साधुओं पर लेख)
2025 प्रयागराज में होने वाले कुंभ में देश दुनिया से साधुओं में आस्था का सैलाब उम्र पड़ा है। देश दुनिया से साधु संतों की टोली प्रयागराज पहुंच गई हैं। क्योंकि इस बार प्रयागराज के इस कुंभ का संयोग 144 बाद बन रहा है। यह कुंभ 13 जनवरी से शुरु होकर लेकर 26 फरवरी को समाप्त हो रहा है। यह कुंभ पूरे 45 दिन चलने वाला है।
आज इस क्रम में महिला साधु व नागा साधु के विषय में बता रहे हैं। हालांकि महिलाओं को साधु बनने पर बहुत आपत्ति उठाई गई। उनको साधु बनने की अनुमति नहीं थी। कहा जाता था कि पुरुष घर से निकले तो ‘साधु’ कहलाता है और महिला घर से निकलती है तो ‘कुलटा’ कहलाती है। लेकिन कुछ महिलाओं ने घर से निकलकर इस मिथक को तोड़ा और देश, दुनिया, समाज के सामने कुछ बनकर दिखाया व एक मिसाल कायम की।
इसके बावज़ूद भी महिला साधुओं को व इनके अखाड़ों को मान्यता नहीं मिली। बहुत संघर्ष के बाद सर्वप्रथम ‘त्रिकाल भवन्ता’ ने “महिला अखाड़े” की नींव रखी। महिला अखाड़े पर बहुत आरोप प्रत्यारोप हुए लेकिन आखिर 2013 में महिला एकेडमी अखाड़े को मान्यता मिल गई और महिला अखाड़ा अस्तित्व में आया।
कहा जाता है कि महिलाओं को संन्यासी बनने से पहले यह साबित करना पड़ता है कि उनका परिवार से कोई संबंध तो नहीं है। साधु बनने से पहले उन्हें मोह माया का त्याग करना पड़ता है, इसके बाद ही उनको महिला अखाड़े में दीक्षा दी जाती है। यह भी कहा जाता है कि महिला साधु अपने बाल उतरवाकर खुद ही अपना पिंडदान भी करती हैं।
महिला साधुओं को ‘माता’ या ‘नागिन’ कहा जाता है। एक विशेष बात यह है कि महिला अखाड़े में कोई जाति पाति व भेदभाव नहीं माना जाता। ये महिला साधु भगवान दत्तात्रेय की पूजा करती हैं।
नागा साधु में भी दो प्रकार के साधु होते हैं दिगंबर और श्वेतांबर। नागा महिला साधुओं को वस्त्र उतारने की अनुमति नहीं होती। वे एक कपड़ा पहनती हैं जो बिना सिला हुआ होता है। ये महिला पेशवाई के दौरान साधु अपने हाथ में तलवार, भाला, त्रिशूल, ध्वज पताका आदि लेकर चलती हैं। क्योंकि ये शक्ति का प्रतीक मानी जाती हैं।