– शाहिद अख़्तर
वक़्त के साथ हमारे बिम्ब और आइकॉन बदलते जाते हैं। सत्ता प्रतिष्ठान, हमारे मुल्ला-पण्डित, मीडिया, संस्कृति की फैक्ट्री हमारी फ़िल्म इंडस्ट्री हमारे लिए नए उत्पाद ले कर आती हैं और अपने हिसाब से अपनी ज़रूरतें पूरी करने के नीयत से हमारे लिए बिम्ब, हमारे नायक-खलनायक और आइकॉन गढ़ती और परोसती हैं।
लिहाज़ा अबुल कलाम आज़ाद नेपथ्य में चले जाते हैं और एपीजे अब्दुल कलाम सामने आते हैं। फ़ातिमा शेख, रोकिया बेगम गुम कर दी जाती हैं।
फ़ातिमा शेख़ वह अज़ीम शख्सियत हैं जिसने महिलाओं की तालीम की शुरुआत में अहम रोल निभाया। जब 1848 में सावित्री बाई फूले ने लड़कियों की तालीम के लिए तहरीक शुरू की तो पुणे के सारे ब्राह्मणों ने एकजुट होकर हिन्दू लडकियों के स्कूल जाने का विरोध किया। ऐसे में, फ़ातिमा शेख़ ने बहादुरी के साथ पहल की और तमाम सामाजिक विरोध के बावजूद वह लड़कियों की तालीम की हिमायत में सावित्रीबाई फूले के साथ खड़ी हुई।
दोनों की मुहिम रंग लाई और उस्मान शेख़ के घर में लड़कियों का पहला स्कूल खुला और फ़ातिमा शेख़ उनकी पहली टीचर बनी।
सावित्रीबाई की अज़मत से सभी वाक़िफ हैं। वह एक आइकॉन हैं। आज जब सावित्रीबाई की अज़मत की चर्चा चल रही है, तो फ़ातिमा शेख़ को भी जानने का सबका हक़ है।