देश का बोझ देश का मिडिल क्लास उठाता है और अपर तथा लोवर क्लास ऐश करता है। मिडिल क्लास कमाता है और उसकी कमाई से लोवर क्लास को मुफ़्त में सब कुछ मिलता है। मध्यम वर्ग जो टैक्स देता है वह लोवर की मुफ़्त की योजनाओं और उच्चतम वर्ग की लूट की भेंट चढ़ जाती हैं।
ऊपर से सरकार के सारे नियम। कानून मिडिल क्लास के लिए ही हैं। दस्तख़त करके तनख़्वाह लेने वाले मिडिल क्लास की तनख्वाह टैक्स के नाम पर काट ली जाती है तो छोटे व्यापारियों के लिए घनचक्कर वाले कानून गले में डाल दिये जाते हैं। वह पाई पाई का टैक्स भरता है, दो रुपए भी फ़र्क आए तो नोटिस पर नोटिस।
इस सबके बावजूद सरकार उनके बिजनेस को खाने और ख़त्म करने में लगी रहती है। हर ट्रेड को लेकर सरकार देशव्यापी स्कीम और योजना बनाती है और उसका टेंडर किसी बड़े उद्योगपतियों को दे देती है।
छोटे व्यापारियों के हत्थे बस मेंटेनेंस और रिप्लेसमेंट का काम रह गया है। देश के सिस्टम में होते विकास में स्थानीय लोगों की भागीदारी बस दर्शक की हो गई है।
बाज़ार इसीलिए त्राहिमाम् कर रहा है।