– अनुराग आर्य
तस्वीर 9 साल के बच्चे की है, जिसके आगे डॉक्टरो की एक टीम झुकी हुई है। 9 साल के इस बच्चे को दिमाग़ का कैंसर था। विदा होने से पहले उसने अपनी माँ को कहा उसे अपने अंग दान करने हैं। उसकी लिवर और किडनी डोनेट हुई, अंग प्रत्यारोपण करने वाली टीम ने उसे सम्मान दिया।
इस उम्र मे स्कूल में सुनी किसी बात को उसने भूला नहीं।
क्या था जो उसके मन मे रह गया?
क्यों इतनी तकलीफ़ों के बाद भी उसे दूसरों की फ़िक्र रह गई
और उसके माँ बाप को उसकी फ़िक्र की परवाह।
उसके जाने के बाद वे मना भी तो कर सकते थे.
कौन हैं ये लोग!
इनके सीने मे कौन सा दिल होता है जो अलग किस्म की बातें उनकी रगों में दौड़ाती हैं?
कौन सी अलहदा रूह है इनमें जो जिस्मों की भीड़ मे अलग तरीके से सोचती हैं?
वैसे आपने कभी किसी लम्हे सोचा है आपने इस मिट्टी को, इस दुनिया को अब तक जीये क्या दिया?
क्या वापस किया?
कितने आंसू पोंछे?
दूसरे की कितनी तकलीफ़ों में खड़े रहे.
रूह चेक की आपने?
टटोला इस जिस्म को कभी उस वास्ते, कितनी है कितनी नहीं?
कितनी देर रहेंगे आप लोगों के ज़ेहन मे जाने के बाद?
और कितने लोगों में?